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Misc. Erotica - क़ातिलों की बस्ती

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Story written by DR.SUJITHA
INSPIRED BY HINDI NOVEL BY RAJ BHARTI - KATILON KI BASTI
‘आ.स.ग्रूप ऑफ कंपनीज़’ – इस नाम का एक चमचमाता बोर्ड राजनगर के एक बहुत बड़े कमर्षियल कॉंप्लेक्स में एक बड़ी बिल्डिंग के आगे उस बिल्डिंग की शोभा बड़ा रहा था.यह ग्रूप विविध प्रकार के बिज़्नेस मसलन रियल एस्टेट, फाइनान्स, फार्मसूटिकल्स, इत्यादि. ऑफीस की बिल्डिंग शानदार थी और अंदर भी एक-एक कोने सी वैभव और अमीरी सॉफ दिखती थी
यद्यपि आज शनिवार था और ऑफीस का ‘हाफ डे’ परंतु फिर भी सुबह के नौ बजे यहाँ काफ़ी व्यस्तता थी और कर्मचारी अपने कार्य में मग्न थे.
तभी बिल्डिंग के पोर्टिको में एक होंडा सिटी कार आ कर रुकी. ड्राइवर ने उतर कर गाड़ी का दरवाज़ा खोला तो कुछ लोगों को बारी बारी निकलते दो खूबसूरत पैर जिनमे के बेशक़ीमती सफेद जोड़े के सैंडल डाले हुए थे , नज़र आए.शीघ्र ही उन सुन्दर पैरों की स्वामिनी भी गाड़ी से बाहर आ गयी. लोगों की आँखें चमक उठीं.
एक बेहद सुन्दर स्त्री जिसकी उमर 22-23 साल से अधिक नहीं थी, उस गाड़ी से उत्तरी. वह स्त्री बला की खूबसूरत थी और उसने एक बेशाक्मती शिफ्फॉन की गुलाबी साड़ी जो की कुछ हद तक पारदर्शी भी थी और एक उसी से मैल ख़ाता गुलाबी स्लेवलेस्स ब्लाउज़ पहेना हुआ था. उसकी गुलाबी साड़ी में कई चाँदी के डिज़ाइन और चाँदी की ही कड़ाई हुई हुई थी.वो और कोई नहीं बल्कि आ.स.ग्रूप ऑफ कंपनीज़ की मॅनेजिंग डाइरेक्टर अजंता सिंह थी.चलते समय उसके चाल में एक आत्मविश्वास था और चेहरे पर प्राकृतिक मुस्कुराहट. कुछ अन्य लोग भी उसके साथ थे और वह तेज़ कदमों से ऑफीस की ओर चल पड़ी.अजंता का ऑफीस तीसरे माले पर था जिसका फासला उसने लिफ्ट से पूरा किया.


अजंता सिंह जैसे ही अपने ऑफीस में दाखिल हुई उन्हे दरबान ने तो सल्यूट किया ही साथ ही कुछ एंप्लायीस भी मुस्कुरा कर स्वागत करते मिले. वहाँ की रिसेप्षनिस्ट ने एक फूलों का गुलदस्ता उनके हाथ में दिया.
रिसेप्षनिस्ट – वालेकम मैडम
अजंता – थॅंक्स पर आज क्या बात है आप सब लोग किस बात खि खुशी माना रहे हैं – और यह फूल _ _
रिसेप्षनिस्ट – मैडम आज हमारे इस नये ऑफीस की स्थापना के दो साल पुर हो रहे हैं. और हाँ हम सब आपका शुक्रिया अदा करना चाहते हैं
अजंता – वो क्यों?
रिसेप्षनिस्ट – मैडम हम सब इस साल हुए सॅलरी इनक्रिमेंट से बहुत खुश हैं
अजंता खिलखिला कर हंस पड़ी – उसके मोती जैसे सफेद दाँत चमक उठे और सबको कानो में खनकती आवाज़ सुनाई दी – भाई यह तो आप सब लोगों की मेहनत का ही फल है.
कुछ पुरुष कर्मचारी तो उसकी पारदर्शक साड़ी से झँiकति हुई नाभि और सीने की उभारों को भी देख रहे थे और उसकी खूबसूरती को पूरी तरह अपनी आँखों में उतारने का प्रयत्न कर रहे थे.
इन सब कर्मचारियों के साथ शामिल थे कंपनी के सीनियर डाइरेक्टर 55 वर्षीए श्री दीनानाथ जो की कंपनी के शुरू से ही जुडे थे यानी की जब अजंता के पिता ने इसको 25 साल पहले शुरू किया था.उन्हने कहा – मैडम आप को मुबारक हो.
भगवान ने अजंता को दौलत के साथ खूबसूरती भी बहुत खुल कर दी थी. अजंता बहुत खूबसूरत थी. दूध और केसर में मिल गोरा और गुलाबी रंग, चाँद सा सुंदर चेहरा, 5 फुट 6 इंच लंबा कद और उसके उपर एक मदमाता जिस्म (36-24-35) और गुलाबी होंठ. उपर से काले घने लंबे बाल जिन्हे वह ज़्यादातर खुला रखती थी.अजंता की कमर थोड़ी सी बीच में बल खाई थी और उसके वक्ष एक दम गोल और सामने की ओर तने हुए थे. उसके निप्पल गुलाबी और बेहद कलात्मक उरोज थे एक दम अजंता की मूरत जैसे.अपने नाम के ही अनुरूप थी अजंता सिंह जो अब आ.स ग्रूप ऑफ कंपनीज़ की मालिक थी.अजंता होंठों पे मुस्कुराहट लिए अपने कॅबिन में दाखिल हुई. उसका कॅबिन भी बहुत विशाल और महेंगे इंटीरियर्स से सुससाजीत था.अजंता ने सबसे पहले अपने मृत पिता की तस्वीर को हाथ जोध कर प्रणाम किया और कुछ उदास हो गयी.फिर उसने अपनी विशाल कुर्सी पर बैठ ते ही मेज़ पर पड़ी घंटी बजाई.
अंडर एक ऑफीस बॉय दाखिल हुआ – जी मैडम
अजंता – दीनानाथजीको बुलाओ
थोड़ी ही देर में दीनानाथजी अंदर आ गये.अजंता ने उन्हे बैठने का इशारा किया और एक फाइल देखने लगी.
अजंता – क्या बात है आज कल आप बहुत ग़लतियाँ करने लगें हैं.
दीनानाथ जी कुछ हैरान दिखाई देने लगे – जी
अजंता – जी. जी हाँ आप हे से बात कर रही हूँ.अजंता अपनी सीट से उठीं और उनके समीप पहुँची. फिर ज़मीन पर जिस पर एक आलीशान कार्पेट बिच्छा था, कुछ नीचे होकर झूक गयीं- अंकल आप प्लीज़ मुझे मैडम मत कहा करिए.
दीनानाथजी – ओह सॉरी _ __ मेरा मतलब है बेटी _ __वो
अजंता की आँखों में आँसू आ गये- अंकल पापा जब से नहीं रहे में कुछ भी बात हो आपकी ओर ही देखती हूँ.
दीनानाथजी – बेटी ऐसा मत करो.में तो अकेला ही था मुझे तुम्हारे पिता ने सहारा दिया और इस मुक़ाम तक पहुँचाया. तुम खुद को अकेला मत समझो.
अजंता अपने आँसू पोंच्छ कर अपनी कुर्सी पर वापस आ गयी और उनसे ज़रूरो मसलों पर विचार विमर्षा करने लगी.
तभी उसका ध्यान वहाँ पर रखे ग्लब पर गया और उसने दक्षिण आफ्रिका के नक्शे पर उंगली रखी. दीनानाथजी पूच्छने लगे – बेटी कुछ दिन पहले तुमने दक्षिण आफ्रिका जाने का निस्चाया किया थॉ. क्या बात है. क्या वहाँ हमारी एस्टेट में कोई समस्या.
अजंता – अंकल एक बहुत बड़ा इश्यू है. वोही यहाँ पर हमारी एस्टेट और छुपे ख़ज़ाने का.इस के लिए एक बहुत अच्छा डीटेक्टिव चाहिए. पर मैने आपसे जो डीटेक्टिव एजेन्सी की बात की थी _ _ __
दीनानाथ – हाँ बेटी एक बहुत जाना हुआ डीटेक्टिव है अनिल चौहान. मैने उसे बात की है.पर उसके साथ मीटिंग फिक्स करने के लिए _ __
अजंता – अंकल आप तो जानते ही हैं. में मंडे से तीन दिन बहुत बिज़ी हूँ. दो साइट विज़िट्स हैं वह राज नगर के बहार की ज़मीन और एक अन्य प्लॉट खरीदने के लिए और फिर फाइनान्स ग्रूप के साथ मीटिंग और ऑडिट _ __
दीनानाथ – अरे हाँ बेटी. तुम्हारी आर्किटेक्ट के साथ मंगलवार को मीटिंग फिक्स की है – साइट पर ही सुबह 10 बजे.
अजंता – थॅंक्स अंकल.पर ह्म इस डीटेक्टिव से च्छुटी वाले दिन यानी कल नहीं मिल सकते?
दीनानाथ – नहीं बेटा कल वह शहेर से बाहर है और मंगलवार को ही लोतेगा. अगर तुम कहो तो में उसके साथ शुक्रवार की मीटिंग रख दम क्योंकि उस दिन हमारे ऑफीस में भी राम नवमी की छुटी है.
अजंता – यह ठीक रहेगा अंकल. आप शुक्रवार शाम को मेरे घर पर ही मीटिंग फिक्स कर दें.
दीनानाथ – ठीक है पर इस मीटिंग में शायद एसीपी रघुनाथ भी होंगे . तुम जानती हो उन्हे.
अजंता – हाँ रघुनाथ अंकल तो पापा के अच्छे दोस्तों में से हैं.पर उनका इस मीटिंग से क्या संबंध है.
दीनानाथ – बेटी दरअसल वह अनिल के भी अच्छे घनिष्ट दोस्तों में से है समझ लो उसको अपना छोटा भाई मनते हैं. उनके साथ यह मीटिंग मैने ही फिक्स करवाई है. असल में अनिल का कुछ ऐसा है की वह जितना बुद्धिमन , शातिर और बहादुर जासूस है उतना ही मस्त मौला , मज़किया और चंचल स्वाभाव का भी. उसका मूड हो तो सीरीयस माहौल में भी अपनी झकझाकियाँ शुरू कर देगा. एसीपी रघुनाथ के होने से वह मीटिंग का आवश्या मन रखेगा और तुम्हारी बात ध्यान से सुनेगा.एक बात . अनिल है बहुत काबिल. वह अपना पुश्टेनी बिज़्नेस संभालने के साथ एक डीटेक्टिव का भी काम करता है. एसीपी रघुनाथ से उसकी घनिष्ट ता इस वजह से भी है क्योंकि उस ने पोलीस महेकमे के कई केसस सुलझाए हैं.
अजंता मुस्कुराने लगी – बड़े दिलचस्प आदमी मालूम होते हैं. इनसे तो मिलना ही होगा.
दीनानाथ – बहुत हॅंडसम भी है. अभी उमर भी यही कोई 25-26 साल.
अजंता – ठीक है अंकल इनसे मीटिंग रख लीजिए और हाँ आप मुझे कुछ दिखाने लगे थे.
दीनानाथ – ज़रा कमरे के उस कोने में आओ.
उस विशाल कमरे में एक और कॅबिन था.दोनो अपनी कुर्सी से उठ कर कमरे क एक छोटे से कोने में गयी जहाँ एक कॅबिन जैसी तदी सी जगह थी पर वह काफ़ी गुप्त थी.
दीनानाथ जी ने एक स्विच दबाया और एक छोटा सा दरवाज़ा जो दीवार में बनाया गया था, खुल गया – उसमे एक काग़ज़ था –जो की एक नक्शा था.
अजंता – अंकल क्या यह उसी जगह का नक्शा है.
दीनानाथ – हाँ बेटी पर पूरा नहीं है. उसका बाकी का हिस्सा वहीं आफ्रिका में है. तुम्हारी एस्टेट में- उसको दूनधने का भी एक रास्ता बना हुआ है एक कागज़ा पर – जो मैने _ _ _ _(उन्होने इशारों में कुछ कहा)
अजंता – ओह ! में समझ गयी
दीनानाथ – क्या करना है तुम्हे मालूम है. अब इस बारे में अनिल से शुक्रवार को बात करेंगे.
अजंता – जी बहुत अच्छा. और अजंता के चेहरे पर एक रहेसयमयी खामोशी च्छा गयी. वह गहरी सोच में थी.
आज खुशी मनने के अवसर पर स्टाफ के लिए लंच रखा गया था.लंच के बाद अजंता कुछ देर ऑफीस में काम करती रही और शाम 5 बजे अपनी गाड़ी में बैठकर अपनी आलीशान कोठी जो की उसके ऑफीस से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर थी आ गयी. वापस आते ही उसने अपने डाइनिंग हॉल में बैठ कर चाय पी और फिर सीधा अपने बेडरूम में गयी.
वहाँ एक बार फिर उसकी नज़र अपने पिता की तस्वीर पर गयी और वह कुछ उदास हो गयी. – उसके पिता महेंद्रा नाथ सिंह – जिनका देहांत अभी कुछ महीने पहेल ही हुआ था- कितना प्यार करते थे उसे. अजंता की मा का देहांत तभी हो गया था जब वह 12 बरस कीट ही. उन्होने उसके पालन पोषण में कोई कमी नहीं रखी थी. उसकी हर खुशी को पूरा करने के साथ-2 उन्होने अजंता में अच्छे संस्कार भी भरे और उसे पढ़ा लिखा कर इस योगया बनाया की वह बिज़्नेस इत्यादि संभाल सके. इतना ही नहीं एक ग़लत शादी होने से भी वह बाल-2 बच गयी थी.अजंता ने रात का खाना खाने से पहले कुछ नहाने और तरोताज़ा होने का निश्चय किया और वह अपने कपड़े बदलने लगी. पर उसके मन में पूरिने यादें एक फिल्म की तरह चल रही थी.
उसने बेडरूम का दरवाज़ा अंदर से बंद किया और उसने बिस्तर के पास खड़ी होकर ही अपनी साड़ी उतार दी और उसे बिस्तर पर ही एक जगह रख दिया. केवल पेटिकोट और ब्लाउज़ में ही उसका यौवन खिल उठा.वह विचारों में खोई हुई थी और उस अवस्था में ही उसका हाथ अपने सीन एके मध्य में चला गया था और वह अपने ब्लाउज़ के हुक्स खोलने लगी. उसके बाद अपना ब्लाउज़ उतार कर साड़ी के पास ही रख दिया और उसका हाथ फिर अपनी कमर के पास चला गया जहाँ की उसके पेटिकोट का नाडा बँधा था. उसने नाडा खोलकर अपना पेटिकोट उत्तारा और उसे भी बाकी उतरे हुए कपड़ो के समीप रख दिया.वह अभी भी कुछ ताकि और उदास लग रही थी और अपनी एस्टेट के उस ख़ज़ाने और अपनी कंपनी के कुछ ज़रूरी दस्तावज़ों के बारे में भी सोच रही थी जो की आफ्रिका में उनकी एस्टेट में कहीं छुपा था और जिसका पता लगाना और हासिल करना बहुत ज़रूरी था.
अजंता का हाथ अपनी पीठ के पीछे घुमा और उसने अपनी ब्रेज़ियर का हुक खोल दिया. फिर एक झटके से उसे उतार दिया. उसका वक्ष स्थल नंगा हो गया और उसके उभर ऐसे टन कर सामने को आ गये जैसे दो कबूतर आज़ाद हो गये हों.उसके बाद उसने अंडरविएर (पेंटी) भी उतार कर एक और रख दी. अब उसका
संगमरमरी शरीर पूरी तरह से नंगा था






पर अपने नंगेपन के एहसास से दूर अजंता विचारों में खोई बिस्तर पर बैठ गयी और पुराने ख़यालात उसके दिमाग़ में एक फिल्म की तरह चलने लगे.

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